Ayodhya Set of 5 Books: AYODHYA KA ITIHAS | Adbhut Ayodhya | Ram Fir Laute | Yudhdh Me Ayodhya | Ayodhya Ka Chashmdid

Publisher:
Prabhat Prakashan / Bloomsbury Publishing
| Author:
Rai Bahadur Lala Sitaram / Neena Rai / Hemant Sharma
| Language:
Hindi
| Format:
Omnibus/Box Set

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इस सेट में निम्नलिखित 5 पुस्तकें शामिल हैं:

  1. अयोध्या का इतिहास : लाला सीताराम ने 1932 में अयोध्या का इतिहास लिखा था। इनके पूर्वज राम के अनन्य भक्त थे। इसलिए जौनपुर छोड़ अयोध्या नगरी में बस गए थे। लाला सीताराम ने अयोध्या में अपने घर के एक कमरे में रामायण मंदिर भी बना रखा था। यहाँ रहते हुए उन्होंने ‘अयोध्या का इतिहास’ लिखना प्रारंभ किया। वेद से लेकर पुराणों में अयोध्या का उल्लेख तो मिलता है लेकिन अयोध्या के इतिहास पर कोई समग्र दृष्टि डालती पुस्तक का अभाव लगातार उन्हें यह इतिहास लिखने के लिए प्रेरित करता रहा। लाला सीताराम ने गहन शोध कर वेद काल से लेकर ब्रिटिश काल के अयोध्या पर प्रकाश डाला है। अयोध्या न सिर्फ हिंदुओं का एक पवित्रतम तीर्थ है वरन् जैन, बौद्ध और सिख के लिए भी उतना ही पावन और श्रद्धा का केंद्र है।
  2. अद्भुत अयोध्याभारत की पवित्र भूमि के राजाओं को उखाड़ फेंकने के बाद, बाबर ने निर्दोष हिंदू जनता पर भयानक क्रोध फैलाया। उसने ‘गाजी’ की अशुभ उपाधि अर्जित करने के लिए निर्दोष हिंदुओं के खिलाफ बर्बरता के सबसे घृणित कृत्यों को अंजाम दिया – अविश्वासियों से ‘ज़ार’ (धन), ‘ज़ोरू’ (महिलाएं), और ‘ज़मीन’ (भूमि) को लूटने वाला। . उनका दृढ़ विश्वास था कि जब तक राम जन्मभूमि मंदिर खड़ा रहेगा और भगवान राम पूजनीय रहेंगे, ये हिंदू काफिर इस्लाम में परिवर्तित नहीं होंगे। नतीजतन, 1528 में, उसने मंदिर को ध्वस्त कर दिया और उसके खंडहरों पर बाबरी मस्जिद खड़ी कर दी।फिर भी, विनाश की निरंतर लहरों के बावजूद, हिंदुओं ने अपने विश्वास को छोड़ने से इनकार कर दिया। इसके बजाय, उन्होंने अयोध्या की लौ को प्रज्वलित रखने के लिए स्वेच्छा से खुद को बलिदान करते हुए माचिस की तरह अपना जीवन अर्पित कर दिया। न केवल सामान्य हिंदुओं ने अपना जीवन बलिदान किया, बल्कि अनगिनत कवियों और लेखकों ने, निरंतर लेखन और गायन के माध्यम से, प्रभु राम, उनके मंदिर और अयोध्या की महिमा को लाखों लोगों के दिल और दिमाग में उज्ज्वल बनाए रखने के लिए अपना अस्तित्व समर्पित कर दिया।श्री राम की अयोध्या को इतना असाधारण क्या बनाता है? इसमें ऐसा क्या खास है कि अनगिनत लोगों ने इसे संरक्षित करने के लिए खुद को झोंक दिया? उस ज्ञान की खोज पर निकलें जो प्राचीन अयोध्या के लंबे समय से छिपे रहस्यों को उजागर करता है। यह यात्रा अयोध्या के गहन महत्व के बारे में आपकी समझ को गहरा करेगी, एक हिंदू के रूप में आपकी पहचान पर गर्व की एक नई और स्फूर्तिदायक भावना को आपके भीतर प्रज्वलित करेगी।
  3. राम फिर लौटे राम भारत की प्राणशक्ति हैं। राम ही धर्म हैं। धर्म ही राम है। मानव चरित्र की श्रेष्ठता और उदात्तता का सीमांत राम से बनता है। कष्ट और नियति चक्र के बाद भी राम का सत्यसंध होना भारतीयों के मनप्राण में गहरे तक बसा है। हर व्यक्ति के जीवन में हर कदम पर जो भी अनुकरणीय है, वह राम है। ऐसे राम अयोध्या में फिर लौट आए हैं। अपने भव्य, दिव्य और विशाल मंदिर में, जिसके लिए पाँच सौ साल तक हिंदू समाज को संघर्ष करना पड़ा। यह मंदिर सनातनी आस्था का शिखर है। ‘राम फिर लौटे’ राममयता के विराट् संसार के समकालीन और कालातीत संदर्भों का पुनर्मूल्यांकन है। राम मंदिर आंदोलन के इतिहास के पड़ावों की यात्रा करते हुए यह पुस्तक राम के उन मूल्यों को नए संदर्भों में विचारती है, जिनके कारण मंदिर राम की चेतना का नाभिकीय केंद्र बनेगा। यह उन उदात्त भारतीय जीवन मूल्यों का आधार होगा, जो तोड़ते, नहीं जोड़ते हैं। अयोध्या के राममंदिर ने राम और भारतीयता के गहरे अंतसंबंधों को समझने का नया गवाक्ष खोला है। ‘राम फिर लौटे’ इसी गवाक्ष से रामतत्त्व, रामत्व और पुरुषोत्तम स्वरूप की विराटता तो नए संदर्भों में देखती है।
  4. युद्ध में अयोध्या अयोध्या का मतलब है, जिसे शत्रु जीत न सके। युद्ध का अर्थ हम सभी जानते हैं। योध्य का मतलब, जिससे युद्ध किया जा सके। मनुष्य उसी से युद्ध करता है, जिससे जीतने की संभावना रहती है। यानी अयोध्या के मायने हैं, जिसे जीता न जा सके। पर अयोध्या के इस मायने को बदल ये तीन गुंबद राष्ट्र की स्मृति में दर्ज हैं। ये गुंबद हमारे अवचेतन में शासक बनाम शासित का मनोभाव बनाते हैं। सौ वर्षों से देश की राजनीति इन्हीं गुंबदों के इर्द-गिर्द घूम रही है। आजाद भारत में अयोध्या को लेकर बेइंतहा बहसें हुईं। सालों-साल नैरेटिव चला। पर किसी ने उसे बूझने की कोशिश नहीं की। ये सबकुछ इन्हीं गुंबदों के इर्द-गिर्द घटता रहा। अब भी घट रहा है। अब हालाँकि गुंबद नहीं हैं, पर धुरी जस-की-तस है। इस धुरी की तीव्रता, गहराई और सच को पकड़ने का कोई बौद्धिक अनुष्ठान नहीं हुआ, जिसमें इतिहास के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य को जोड़ने का माद्दा हो, ताकि इतिहास के तराजू पर आप सच-झूठ का निष्कर्ष निकाल सकें। उन तथ्यों से दो-दो हाथ करने के प्रामाणिक, ऐतिहासिक और वैधानिक आधार के भागी बनें।
  5. अयोध्या का चश्मदीद यह पुस्तक लेखक हेमंत शर्मा जी द्वारा अयोध्या आंदोलन के समय लिखे गए अखबारी लेखों का संकलन है । इसे पढ़कर आप उस समय के राजनीति, समाज और जनमानस की मनोदशा का अनुभव कर सकते हैं ।
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इस सेट में निम्नलिखित 5 पुस्तकें शामिल हैं:

  1. अयोध्या का इतिहास : लाला सीताराम ने 1932 में अयोध्या का इतिहास लिखा था। इनके पूर्वज राम के अनन्य भक्त थे। इसलिए जौनपुर छोड़ अयोध्या नगरी में बस गए थे। लाला सीताराम ने अयोध्या में अपने घर के एक कमरे में रामायण मंदिर भी बना रखा था। यहाँ रहते हुए उन्होंने ‘अयोध्या का इतिहास’ लिखना प्रारंभ किया। वेद से लेकर पुराणों में अयोध्या का उल्लेख तो मिलता है लेकिन अयोध्या के इतिहास पर कोई समग्र दृष्टि डालती पुस्तक का अभाव लगातार उन्हें यह इतिहास लिखने के लिए प्रेरित करता रहा। लाला सीताराम ने गहन शोध कर वेद काल से लेकर ब्रिटिश काल के अयोध्या पर प्रकाश डाला है। अयोध्या न सिर्फ हिंदुओं का एक पवित्रतम तीर्थ है वरन् जैन, बौद्ध और सिख के लिए भी उतना ही पावन और श्रद्धा का केंद्र है।
  2. अद्भुत अयोध्याभारत की पवित्र भूमि के राजाओं को उखाड़ फेंकने के बाद, बाबर ने निर्दोष हिंदू जनता पर भयानक क्रोध फैलाया। उसने ‘गाजी’ की अशुभ उपाधि अर्जित करने के लिए निर्दोष हिंदुओं के खिलाफ बर्बरता के सबसे घृणित कृत्यों को अंजाम दिया – अविश्वासियों से ‘ज़ार’ (धन), ‘ज़ोरू’ (महिलाएं), और ‘ज़मीन’ (भूमि) को लूटने वाला। . उनका दृढ़ विश्वास था कि जब तक राम जन्मभूमि मंदिर खड़ा रहेगा और भगवान राम पूजनीय रहेंगे, ये हिंदू काफिर इस्लाम में परिवर्तित नहीं होंगे। नतीजतन, 1528 में, उसने मंदिर को ध्वस्त कर दिया और उसके खंडहरों पर बाबरी मस्जिद खड़ी कर दी।फिर भी, विनाश की निरंतर लहरों के बावजूद, हिंदुओं ने अपने विश्वास को छोड़ने से इनकार कर दिया। इसके बजाय, उन्होंने अयोध्या की लौ को प्रज्वलित रखने के लिए स्वेच्छा से खुद को बलिदान करते हुए माचिस की तरह अपना जीवन अर्पित कर दिया। न केवल सामान्य हिंदुओं ने अपना जीवन बलिदान किया, बल्कि अनगिनत कवियों और लेखकों ने, निरंतर लेखन और गायन के माध्यम से, प्रभु राम, उनके मंदिर और अयोध्या की महिमा को लाखों लोगों के दिल और दिमाग में उज्ज्वल बनाए रखने के लिए अपना अस्तित्व समर्पित कर दिया।श्री राम की अयोध्या को इतना असाधारण क्या बनाता है? इसमें ऐसा क्या खास है कि अनगिनत लोगों ने इसे संरक्षित करने के लिए खुद को झोंक दिया? उस ज्ञान की खोज पर निकलें जो प्राचीन अयोध्या के लंबे समय से छिपे रहस्यों को उजागर करता है। यह यात्रा अयोध्या के गहन महत्व के बारे में आपकी समझ को गहरा करेगी, एक हिंदू के रूप में आपकी पहचान पर गर्व की एक नई और स्फूर्तिदायक भावना को आपके भीतर प्रज्वलित करेगी।
  3. राम फिर लौटे राम भारत की प्राणशक्ति हैं। राम ही धर्म हैं। धर्म ही राम है। मानव चरित्र की श्रेष्ठता और उदात्तता का सीमांत राम से बनता है। कष्ट और नियति चक्र के बाद भी राम का सत्यसंध होना भारतीयों के मनप्राण में गहरे तक बसा है। हर व्यक्ति के जीवन में हर कदम पर जो भी अनुकरणीय है, वह राम है। ऐसे राम अयोध्या में फिर लौट आए हैं। अपने भव्य, दिव्य और विशाल मंदिर में, जिसके लिए पाँच सौ साल तक हिंदू समाज को संघर्ष करना पड़ा। यह मंदिर सनातनी आस्था का शिखर है। ‘राम फिर लौटे’ राममयता के विराट् संसार के समकालीन और कालातीत संदर्भों का पुनर्मूल्यांकन है। राम मंदिर आंदोलन के इतिहास के पड़ावों की यात्रा करते हुए यह पुस्तक राम के उन मूल्यों को नए संदर्भों में विचारती है, जिनके कारण मंदिर राम की चेतना का नाभिकीय केंद्र बनेगा। यह उन उदात्त भारतीय जीवन मूल्यों का आधार होगा, जो तोड़ते, नहीं जोड़ते हैं। अयोध्या के राममंदिर ने राम और भारतीयता के गहरे अंतसंबंधों को समझने का नया गवाक्ष खोला है। ‘राम फिर लौटे’ इसी गवाक्ष से रामतत्त्व, रामत्व और पुरुषोत्तम स्वरूप की विराटता तो नए संदर्भों में देखती है।
  4. युद्ध में अयोध्या अयोध्या का मतलब है, जिसे शत्रु जीत न सके। युद्ध का अर्थ हम सभी जानते हैं। योध्य का मतलब, जिससे युद्ध किया जा सके। मनुष्य उसी से युद्ध करता है, जिससे जीतने की संभावना रहती है। यानी अयोध्या के मायने हैं, जिसे जीता न जा सके। पर अयोध्या के इस मायने को बदल ये तीन गुंबद राष्ट्र की स्मृति में दर्ज हैं। ये गुंबद हमारे अवचेतन में शासक बनाम शासित का मनोभाव बनाते हैं। सौ वर्षों से देश की राजनीति इन्हीं गुंबदों के इर्द-गिर्द घूम रही है। आजाद भारत में अयोध्या को लेकर बेइंतहा बहसें हुईं। सालों-साल नैरेटिव चला। पर किसी ने उसे बूझने की कोशिश नहीं की। ये सबकुछ इन्हीं गुंबदों के इर्द-गिर्द घटता रहा। अब भी घट रहा है। अब हालाँकि गुंबद नहीं हैं, पर धुरी जस-की-तस है। इस धुरी की तीव्रता, गहराई और सच को पकड़ने का कोई बौद्धिक अनुष्ठान नहीं हुआ, जिसमें इतिहास के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य को जोड़ने का माद्दा हो, ताकि इतिहास के तराजू पर आप सच-झूठ का निष्कर्ष निकाल सकें। उन तथ्यों से दो-दो हाथ करने के प्रामाणिक, ऐतिहासिक और वैधानिक आधार के भागी बनें।
  5. अयोध्या का चश्मदीद यह पुस्तक लेखक हेमंत शर्मा जी द्वारा अयोध्या आंदोलन के समय लिखे गए अखबारी लेखों का संकलन है । इसे पढ़कर आप उस समय के राजनीति, समाज और जनमानस की मनोदशा का अनुभव कर सकते हैं ।

About Author

लाला सीताराम का जन्म 20 जनवरी, 1858 (कहीं 1861 भी मिलता है) को अयोध्या में हुआ था। उनके पुरखे जौनपुर के थे, जो अयोध्या के प्रसिद्ध संत बाबा रघुनाथ दास के शिष्य हो गए थे और अयोध्या में रहने लगे थे। सन् 1879 में सीतारामजी ने बी.ए. के बाद वकालत की डिग्री भी ली। कुछ समय तक ‘अवध अखबार’ के संपादक रहे। बाद में क्वींस कॉलेज, बनारस में अध्यापक हो गए। इसके बाद सीतापुर में भी अध्यापन किया। कालक्रम में अंग्रेजों ने असिस्टेंट इंस्पेक्टर और डिप्टी कलेक्टर भी बना दिया। वैदिक साहित्य में उनकी गहरी रुचि थी। ‘प्रयाग प्रदीप’ से जानकारी मिलती है कि सन् 1883 से उनकी पुस्तकें प्रकाशित होने लगी थीं। उन्हें अंग्रेजी, संस्कृत और फारसी आदि कई भाषाओं का ज्ञान था। ब्रजभाषा में कविताएँ भी लिखा करते थे। संस्कृत के क्लिष्ट काव्यों तथा दुरूह नाटकों का हिंदी में अनुवाद किया। इनमें कालिदास, भवभूति, शुद्रक, हर्ष आदि के कई नाटक प्रमुख थे। ब्रिटिश सरकार ने शिक्षा, प्रशासन व साहित्य में उनकी उपलब्धियों को देखकर ‘रायबहादुर’ की उपाधि प्रदान की थी।
हेमंत शर्मा पुश्तैनी रिश्ता अयोध्या से, पर जन्म से बनारसी।पढ़ाई के नाम पर बी.एच.यू. से हिंदी में डॉक्टरेट। बाद में वहीं विजिटिंग प्रोफेसर भी हुए।समाज, प्रकृति, उत्सव, संस्कृति, परंपरा, लोकजीवन का ज्ञान काशी में ही हुआ; शब्द तात्पर्य और धारणाओं की समझ भी वहीं बनी। 16 साल तक लखनऊ में रह जनसत्ता, हिंदुस्तान में संपादकी की, फिर दिल्ली में लंबे अर्से से टी.वी. पत्रकारिता। अयोध्या आंदोलन को काफी करीब से देखा । ताला खुलने से लेकर ध्वंस तक की हर घटना की रिपोर्टिंग के लिए अयोध्या में मौजूद इकलौते पत्रकार ।पत्रकारिता के सर्वोच्च पुरस्कार 'गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान' से पुरस्कृत। उत्तर प्रदेश सरकार के सर्वोच्च पुरस्कार 'यशभारती' से सम्मानित ।अयोध्या पर सबसे प्रामाणिक पुस्तकों 'युद्ध में अयोध्या' और 'अयोध्या का चश्मदीद' के लेखक कैलाश मानसरोवर की अंतर्यात्रा कराती पुस्तक 'द्वितीयोनास्ति' बहुचर्चित 'तमाशा मेरे आगे', 'एकदा भारतवर्षे' और 'देखो हमरी काशी' अन्य लोकप्रिय कृतियाँ ।गुजर-बसर के लिए पत्रकारिता और जीवन जीने का सहारा लेखन । अब दिल्ली में बनारसीपन के विस्तार में लगे हैं। ,br. नीना राय का जन्म पुणे, भारत में हुआ था। वह प्रतिष्ठित भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली की पूर्व छात्रा हैं। नीना को हिंदू धर्मग्रंथों में निहित ज्ञान को लिखने और समझने का शौक है। वह धार्मिक ग्रंथों को समझने के लिए वर्षों से संस्कृत का अध्ययन कर रही हैं। वह अंग्रेजी, हिंदी, भोजपुरी में भी पारंगत हैं और उन्होंने स्पेनिश, अरबी और उर्दू सीखी है। नीना एक निपुण अमूर्त कलाकार हैं। अतीत में, मीडिया में काम करने के अलावा, उन्होंने एक फैशन मॉडल और एक अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट अटेंडेंट के रूप में भी काम किया है।
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