Banwaas (Hindi)

Publisher:
MANJUL
| Author:
Shakeel Azmi
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback

179

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166

जंगल हमारा आबाई वतन है। हज़ारों बरस पहले जब ज़मीन पर इन्सानी ख़ून और बारूद की लकीरें नहीं खींची गई थीं, जब न मुल्क थे न शह्र थे, न रियासतें थीं, तब स़िर्फ ज़मीन थी, जंगल थे और हम थे। जंगल हमारी रगों में ख़ून के साथ बह रहे हैं वो हमें पुकारते हैं, अपनी तख़रीब की फ़रियाद करते हैं, लेकिन हम ये आवाज़ अनसुनी कर देते हैं। शकील आज़मी ने ये आवाज़ सुनी है और अपने लफ़्ज़ों में इस आवाज़ की तस्वीर भी बनाई है और तस्वीर को गुफ़्तगू का हुनर भी अता किया है। -जावेद अ़ख्तर

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Description

जंगल हमारा आबाई वतन है। हज़ारों बरस पहले जब ज़मीन पर इन्सानी ख़ून और बारूद की लकीरें नहीं खींची गई थीं, जब न मुल्क थे न शह्र थे, न रियासतें थीं, तब स़िर्फ ज़मीन थी, जंगल थे और हम थे। जंगल हमारी रगों में ख़ून के साथ बह रहे हैं वो हमें पुकारते हैं, अपनी तख़रीब की फ़रियाद करते हैं, लेकिन हम ये आवाज़ अनसुनी कर देते हैं। शकील आज़मी ने ये आवाज़ सुनी है और अपने लफ़्ज़ों में इस आवाज़ की तस्वीर भी बनाई है और तस्वीर को गुफ़्तगू का हुनर भी अता किया है। -जावेद अ़ख्तर

About Author

शकील आज़मी का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला आज़मगढ़ के उनके ननिहाली गाँव ‘सहरिया’ में 2 अप्रेल 1971 को हुआ। उनका आबाई वतन आज़मगढ़ का ही एक गाँव ‘सीधा सुलतानपुर’ है। उनके पिता का नाम वकील अहमद ख़ान और माँ का नाम सितारुन्निसा ख़ान है। माँ के स्वर्गवास के बाद उनकी परवरिश उनकी नानी ने की। वो प्रायमरी तक पढ़ कर मुंबई चले आए और फिर गुजरात के शहर बड़ौदा चले गए। दो वर्ष बड़ौदा में और दो वर्ष भरुच में रहने के बाद वो सूरत आ गए और यहाँ दस वर्ष गुज़ारे। 1984 में उन्होंने पहली ग़ज़ल बड़ौदा में कही लेकिन उनकी शायरी सूरत में परवान चढ़ी। फ़रवरी 21 में वो दोबारा मुंबई आए ओर यहीं के होकर रह गए। उर्दू में अब तक उनकी शायरी की सात किताबें धूप दरिया (1996), ऐशट्रे (2), रास्ता बुलाता है (25), ख़िज़ाँ का मौसक रूका हुआ है (21), मिट्टी में आसमान (212), पोखर में सिंघाड़े (214), बनवास (22) प्रकाशित हो चुकी हैं। हिन्दी में ‘चाँद की दस्तक’, ‘परों को खोल’ के बाद ‘बनवास’ उनका तीसरा काव्य संग्रह है। ‘बनवास’ में छियासी नज़्में और तीस ग़ज़लें हैं जिनका तअल्लुफ़ जंगल और रामायण से है ये किताब अदबी हल्क़ों में अपने विषय के अनोखेपन और मवाद के तजरबाती और रचनात्मक बर्ताव के कारण आधुनिक शायरी में एक शाहकार, महाकाव्य और CREATIVE EPIC के रूप में देखी जा रही है। शकील आज़मी को विभिन्न सरकारी, साहित्यिक और फ़िल्मी संस्थाओं से अब तक बीस पुरूस्कार मिल चुके हैं जिनमें गुजरात उर्दू साहित्य अकैडमी अवार्ड (1996-2-25-21-212), महाराष्ट्र उर्दू साहित्य अकैडमी अवार्ड (21-214-22), उत्तर प्रदेश उर्दू अकैडमी अवाडमी अवार्ड (1996-25-214-22), बिहार उर्दू अकैडमी अवार्ड (25-21-212-214) के अलावा गुजरात गौरव अवार्ड, कैफ़ी आज़मी अवार्ड, SWA अवार्ड, FOIOA अवार्ड और झारखंड नेशनल फ़िल्म फेस्टिवल अवार्ड भी शामिल हैं। 198 के बाद के शायरों में उन्हें एक ख़ास मुक़ाम हासिल है। उन्होंने फ़िल्म, वेबसीरीज़, टीवी और कई प्राइवेट एल्बम के लिए भी गीत लिखे हैं। भीड़, थप्पड़, आर्टिकल 15, मुल्क, शादी में ज़रूर आना, ज़िद, 1921, तुम बिन 2, मदहोशी, ज़हर, 192 एविल रिटर्न्स, EMI, हॉन्टेड, नज़र, धोखा, बदनाम और ‘लाइफ़ एक्सप्रेस’ वग़ैरह उनकी ख़ास फ़िल्में हैं। मुशायरे के सिलसिले में वो अमरीका, कनाडा, दुबई, शारजाह, अबूधाबी, बहरीन, दोहा, क़तर, कुवैत, मस्क़त, सऊदी अरबिया, श्रीलंका और नेपाल का सफ़र कर चुके हैं। उनकी शोहरत का दायरा साहित्य से फ़िल्म तक और फ़िल्म से मुशायरे तक फैला हुआ है। वो ख़वास में जितने मुमताज़ हैं अवाम में उतने ही मक़बूल हैं।
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