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चन्द्रकान्ता संतति सम्पूर्ण 6 खंडों में I CHANDRAKANTA SANTATI set of 6 books (Hindi)
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Devaki Nandan Khatri
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
₹950 ₹760
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ISBN:
Categories: Hindi, Omnibus/Box Set-Hindi, PIRecommends
Page Extent:
चन्द्रकान्ता, संतति ‘चन्द्रकान्ता’ का प्रकाशन 1888 में हुआ। ‘चन्द्रकान्ता’, ‘सन्तति’, ‘भूतनाथ’दृयानी सब मिलाकर एक ही किताब। पिछली पीढ़ियों का शायद ही कोई पढ़ा-बेपढ़ा व्यक्ति होगा जिसने छिपाकर, चुराकर, सुनकर या खुद ही गर्दन ताने आँखें गड़ाए इस किताब को न पढ़ा हो। चन्द्रकान्ता पाठ्य-कथा है और इसकी बुनावट तो इतनी जटिल या कल्पना इतनी विराट है कि कम ही हिन्दी उपन्यासों की हो। अद्भुत और अद्वितीय याददाश्त और कल्पना के स्वामी हैंदृबाबू देवकीनन्दन खत्राी। पहले या तीसरे हिस्से में दी गई एक रहस्यमय गुत्थी का सूत्रा उन्हें इक्कीसवें हिस्से में उठाना है, यह उन्हें मालूम है। अपने घटना-स्थलों की पूरी बनावट, दिशाएँ उन्हें हमेशा याद रहती हैं। बीसियों दरवाज़ों, झरोखों, छज्जों, खिड़कियों, सुरंगों, सीढ़ियों…सभी की स्थिति उनके सामने एकदम स्पष्ट है। खत्राी जी के नायक- नायिकाओं में ‘शास्त्रा सम्मत’ आदर्श प्यार तो भरपूर है ही। कितने प्रतीकात्मक लगते हैं ‘चन्द्रकान्ता’ के मठ-मन्दिरों के खँडहर और सुनसान, अँधेरी, खौफनाक रातें ऊपर से शान्त, सुनसान और उजाड़-निर्जन, मगर सब कुछ भयानक जालसाज हरकतों से भरा…हर पल काले और सफेद की छीना-झपटी, आँख-मिचौनी। खत्राी जी के ये सारे तिलिस्मी चमत्कार, ये आदर्शवादी परम नीतिवान, न्यायप्रिय सत्यनिष्ठावान राजा और राजकुमार, परियों जैसी खूबसूरत और अबला नारियाँ या बिजली की फुर्ती से जमीन-आसमान एक कर डालनेवाले ऐयार सब एक खूबसूरत स्वप्न का ही प्रक्षेपण हैं। ‘चन्द्रकान्ता’ को आस्था और विश्वास के युग से तर्क और कार्य-कारण के युग संक्रमण का दिलचस्प उदाहरण भी माना जा सकता है। – राजेन्द्र यादव
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Description
चन्द्रकान्ता, संतति ‘चन्द्रकान्ता’ का प्रकाशन 1888 में हुआ। ‘चन्द्रकान्ता’, ‘सन्तति’, ‘भूतनाथ’दृयानी सब मिलाकर एक ही किताब। पिछली पीढ़ियों का शायद ही कोई पढ़ा-बेपढ़ा व्यक्ति होगा जिसने छिपाकर, चुराकर, सुनकर या खुद ही गर्दन ताने आँखें गड़ाए इस किताब को न पढ़ा हो। चन्द्रकान्ता पाठ्य-कथा है और इसकी बुनावट तो इतनी जटिल या कल्पना इतनी विराट है कि कम ही हिन्दी उपन्यासों की हो। अद्भुत और अद्वितीय याददाश्त और कल्पना के स्वामी हैंदृबाबू देवकीनन्दन खत्राी। पहले या तीसरे हिस्से में दी गई एक रहस्यमय गुत्थी का सूत्रा उन्हें इक्कीसवें हिस्से में उठाना है, यह उन्हें मालूम है। अपने घटना-स्थलों की पूरी बनावट, दिशाएँ उन्हें हमेशा याद रहती हैं। बीसियों दरवाज़ों, झरोखों, छज्जों, खिड़कियों, सुरंगों, सीढ़ियों…सभी की स्थिति उनके सामने एकदम स्पष्ट है। खत्राी जी के नायक- नायिकाओं में ‘शास्त्रा सम्मत’ आदर्श प्यार तो भरपूर है ही। कितने प्रतीकात्मक लगते हैं ‘चन्द्रकान्ता’ के मठ-मन्दिरों के खँडहर और सुनसान, अँधेरी, खौफनाक रातें ऊपर से शान्त, सुनसान और उजाड़-निर्जन, मगर सब कुछ भयानक जालसाज हरकतों से भरा…हर पल काले और सफेद की छीना-झपटी, आँख-मिचौनी। खत्राी जी के ये सारे तिलिस्मी चमत्कार, ये आदर्शवादी परम नीतिवान, न्यायप्रिय सत्यनिष्ठावान राजा और राजकुमार, परियों जैसी खूबसूरत और अबला नारियाँ या बिजली की फुर्ती से जमीन-आसमान एक कर डालनेवाले ऐयार सब एक खूबसूरत स्वप्न का ही प्रक्षेपण हैं। ‘चन्द्रकान्ता’ को आस्था और विश्वास के युग से तर्क और कार्य-कारण के युग संक्रमण का दिलचस्प उदाहरण भी माना जा सकता है। – राजेन्द्र यादव
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