Sanskrti Ek : Naam Roop Ane 300

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Chaploosi Rekha

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Dinanath Mishra
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

300

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ISBN:
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156

बुरके से बिकनी तक का फासला उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक के फासले से भी ज्यादा है। एक तरफ बुरके में औरतों की आजादी को कैद करने की कोशिश है, दूसरी तरफ बिकनी युग के शुभागमन की तैयारी है। बिकनी युग में सबकुछ आजाद होगा। सबसे ज्यादा आजाद होगी बेहयाई। अखबारवाले भी सवाल पूछने को स्वतंत्र होंगे; बल्कि कह सकते हैं कि वे तो आज भी स्वतंत्र हैं। आप फिल्मी अभिनेत्रियों के साथ उनकी भेंटवार्त्ताएँ पढ़ लीजिए। पहला सवाल होता है कि आप अंग प्रदर्शन के बारे में क्या सोचती हैं? वे जो सोचती हैं, वह बताती हैं। ज्यादातर तो कहती हैं कि उन्हें परहेज नहीं है। मुबारक हो। आज की सभ्यताएँ एक अतिवाद से दूसरे अतिवाद तक झूलती रहती हैं। समझिए, बुरके से बिकनी तक। तालिबानीकरण से लेकर औरतों के बिकनीकरण तक। —इसी पुस्तक से प्रस्तुत काव्य संग्रह के व्यंग्य-विषयों का चयन व्यापक घटनाचक्र से जुड़कर किया गया है। इसलिए ये व्यंग्य अपने पाठक को विषय की विविधता का सुख देते हैं और अद्यतन समय से परिचय कराते हुए उसकी विद्रूपताओं का समाहार करना भी नहीं भूलते।.

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Description

बुरके से बिकनी तक का फासला उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक के फासले से भी ज्यादा है। एक तरफ बुरके में औरतों की आजादी को कैद करने की कोशिश है, दूसरी तरफ बिकनी युग के शुभागमन की तैयारी है। बिकनी युग में सबकुछ आजाद होगा। सबसे ज्यादा आजाद होगी बेहयाई। अखबारवाले भी सवाल पूछने को स्वतंत्र होंगे; बल्कि कह सकते हैं कि वे तो आज भी स्वतंत्र हैं। आप फिल्मी अभिनेत्रियों के साथ उनकी भेंटवार्त्ताएँ पढ़ लीजिए। पहला सवाल होता है कि आप अंग प्रदर्शन के बारे में क्या सोचती हैं? वे जो सोचती हैं, वह बताती हैं। ज्यादातर तो कहती हैं कि उन्हें परहेज नहीं है। मुबारक हो। आज की सभ्यताएँ एक अतिवाद से दूसरे अतिवाद तक झूलती रहती हैं। समझिए, बुरके से बिकनी तक। तालिबानीकरण से लेकर औरतों के बिकनीकरण तक। —इसी पुस्तक से प्रस्तुत काव्य संग्रह के व्यंग्य-विषयों का चयन व्यापक घटनाचक्र से जुड़कर किया गया है। इसलिए ये व्यंग्य अपने पाठक को विषय की विविधता का सुख देते हैं और अद्यतन समय से परिचय कराते हुए उसकी विद्रूपताओं का समाहार करना भी नहीं भूलते।.

About Author

जन्म: 14 सितंबर, 1937, जोधपुर। शिक्षा: एम.ए. (गोल्ड मैडल)। श्री मिश्र पत्रकारिता के क्षेत्र में सन् 1962 में ही आ गए थे। सन् 1967 से लेकर 1974 तक वे ‘पाञ्चजन्य’ साप्ताहिक से संबद्ध। पहले सहायक संपादक और अंतिम तीन वर्ष प्रधान संपादक। आपातकाल में वे जेल में रहे। ‘नवभारत टाइम्स’ में डेढ़ दशक तक ब्यूरो चीफ और स्थानीय संपादक आदि रहे। उनके कॉलम देश के पच्चीस समाचार-पत्रों में प्रकाशित होते रहे। उन्होंने ‘आर.एस.एस.: मिथ एंड रियलिटी’ सहित आधा दर्जन पुस्तकों की रचना की है। सन् 1977 में उन्होंने श्री अटल बिहारी वाजपेयी की आपातकाल में लिखी गई ‘कैदी कविराय की कुंडलियाँ’ का संपादन किया। आपातकाल में ‘गुप्तक्रांति’ नामक पुस्तक भी लिखी। ‘हर-हर व्यंग्ये’, ‘घर की मुरगी’, ‘चापलूसी रेखा’ और ‘पापी वोट के लिए’ नामक चार संकलन प्रकाशित। 1998-2004 तक राज्यसभा सांसद रहे। स्मृतिशेष: 13 नवंबर, 2013.
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