Guru Dutt (Set Of 5 Books): Prarabdh Aur Purusharth | Parimal | Parivartan | Mamta | Mrigtrishna

Publisher:
Hind Pocket Books
| Author:
Guru Dutt
| Language:
Hindi
| Format:
Omnibus/Box Set (Paperback)

636

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ISBN:
SKU PIGURUDUTT5 Category Tag
Page Extent:
760

1. प्रारब्ध और पुरुषार्थ :- 

‘परंतु अब मैं उसके योग्य नहीं रह गई। मैं पतिता हो चुकी हूँ।’

‘मैंने उसे बता दिया है। वह कहता था कि वह तुम्हें पवित्ल कर देगा।’

प्रारब्ध की मार से पतिता हुई परन्तु पुरुषार्थ के बल पर पुनः पवित्र हुई एक अल्पनीय सुन्दरी की अद्भुत तथा मार्मिक कहानी। प्रतिष्ठित उपन्यासकार गुरुदंत्त का अति रोचक यह उपन्यास निरंतर पाठकों को अपनी ओर आकरित करता रहता है

2. परिमल :- 

परिमल हिंदी के लोकप्रिय उपन्यासकार गुरुदत्त का बेहद चर्चित उपन्यास है। इसमें एक दृढ़-चरित्र नारी का सशक्त चित्रण हुआ है जो घर, परिवार और समाज की सुरक्षा के लिए अपने दुश्चरित्र पति का विरोध कर अंततः उसे सही रास्ते पर ले आने में सफलता प्राप्त कर लेती है। गुरुदत्त ने इस उपन्यास में अनेक पात्रों और विविध रोचक घटनाओं के माध्यम से हमारी सामाजिक बुराइयों की ओर संकेत किया है। उपन्यास के प्रवाह में शुरू से अंत तक एक-सी गति है जो पाठक की रुचि को ताज़ी बनाए रखती है।

3. परिवर्तन :- 

परिवर्तन सुप्रसिद्ध उपन्यासकर गुरुदत्त का एक श्रेष्ठ उपन्यास है। बदलाव सृष्टि का नियम है। लेकिन कुछ ऐसे संस्कार होते हैं, जो बदलने नहीं चाहिए, लेकिन बदल जाते हैं। संस्कारों में जब बदलाव होता है, तो एक नए युग और नई संस्कृति की शुरुआत हो जाती है। परिवर्तन और सम्बन्धों पर आधारित इस उपन्यास का आधार है पुरानी और नई पीढ़ी के बीच जनरेशन गैप, इसमें आज के हमारे समाज की बदली हुई मान्यताओं तथा नारी-पुरुष के सम्बन्धों का बड़े ही यथार्थ ढंग से चित्रण हुआ है।

4. ममता :- 

कथाकार गुरुदत्त का पहला उपन्यास सन् 1942 में प्रकाशित हुआ था, और उसी से उनकी गणना श्रेष्ठ उपन्यासकारों में की जाने लगी। तब से वे जीवन पर्यन्त लिखते ही रहे। पाठकों ने उनके उपन्यासों को बहुत अधिक चाहा और सराहा है। ममता, गुरुदत्त का अत्यंत रोचक उपन्यास है और उनकी लेखनी की सभी विशेषताओं से परिपूर्ण है। इसमें एक भारतीय माता के अद्भुत त्याग और ममता की कहानी बड़े हृदयग्राही ढंग से कही गई है।

5. मृगतृष्णा :- 

‘अच्छा, आप मेरा भी कुछ मूल्य समझते हैं अथवा मैं बेमोल की वस्तु हूँ ?’ मुस्कुराकर उसने पूछा तो युवक बोला, ‘क्या दाम कहूँ आपका ? मैं सोचता हूँ कि राधा एक अनमोल वस्तु है।’ इस पर वह हँस पड़ी, ‘आप तो कविता करने लगे हैं ! देखिए जी, मैं आपके लिए बेदाम की वस्तु बन सकती हूँ। कोई दूसरा भले ही अनमोल कहे, परन्तु आपको कुछ दाम न देना पड़ेगा।’ नारी-पुरुष ने एक-दूसरे के मर्म को छू लिया ! सुप्रसिद्ध उपन्यासकार गुरुदत्त ने मृगतृष्णा में उच्चार क्षा प्राप्त करनेवाले नवयुवकों व नवयुवतियों की समस्याओं को सापक दृष्टिकोण से देखा है। समाज में होनेवाले दंगे-फसाद और अनाचार का ऐसा रोमांचकारी चित्रण इस उपन्यास में हुआ है कि आप पढ़कर स्तब्ध रह जाएँगे

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Description

1. प्रारब्ध और पुरुषार्थ :- 

‘परंतु अब मैं उसके योग्य नहीं रह गई। मैं पतिता हो चुकी हूँ।’

‘मैंने उसे बता दिया है। वह कहता था कि वह तुम्हें पवित्ल कर देगा।’

प्रारब्ध की मार से पतिता हुई परन्तु पुरुषार्थ के बल पर पुनः पवित्र हुई एक अल्पनीय सुन्दरी की अद्भुत तथा मार्मिक कहानी। प्रतिष्ठित उपन्यासकार गुरुदंत्त का अति रोचक यह उपन्यास निरंतर पाठकों को अपनी ओर आकरित करता रहता है

2. परिमल :- 

परिमल हिंदी के लोकप्रिय उपन्यासकार गुरुदत्त का बेहद चर्चित उपन्यास है। इसमें एक दृढ़-चरित्र नारी का सशक्त चित्रण हुआ है जो घर, परिवार और समाज की सुरक्षा के लिए अपने दुश्चरित्र पति का विरोध कर अंततः उसे सही रास्ते पर ले आने में सफलता प्राप्त कर लेती है। गुरुदत्त ने इस उपन्यास में अनेक पात्रों और विविध रोचक घटनाओं के माध्यम से हमारी सामाजिक बुराइयों की ओर संकेत किया है। उपन्यास के प्रवाह में शुरू से अंत तक एक-सी गति है जो पाठक की रुचि को ताज़ी बनाए रखती है।

3. परिवर्तन :- 

परिवर्तन सुप्रसिद्ध उपन्यासकर गुरुदत्त का एक श्रेष्ठ उपन्यास है। बदलाव सृष्टि का नियम है। लेकिन कुछ ऐसे संस्कार होते हैं, जो बदलने नहीं चाहिए, लेकिन बदल जाते हैं। संस्कारों में जब बदलाव होता है, तो एक नए युग और नई संस्कृति की शुरुआत हो जाती है। परिवर्तन और सम्बन्धों पर आधारित इस उपन्यास का आधार है पुरानी और नई पीढ़ी के बीच जनरेशन गैप, इसमें आज के हमारे समाज की बदली हुई मान्यताओं तथा नारी-पुरुष के सम्बन्धों का बड़े ही यथार्थ ढंग से चित्रण हुआ है।

4. ममता :- 

कथाकार गुरुदत्त का पहला उपन्यास सन् 1942 में प्रकाशित हुआ था, और उसी से उनकी गणना श्रेष्ठ उपन्यासकारों में की जाने लगी। तब से वे जीवन पर्यन्त लिखते ही रहे। पाठकों ने उनके उपन्यासों को बहुत अधिक चाहा और सराहा है। ममता, गुरुदत्त का अत्यंत रोचक उपन्यास है और उनकी लेखनी की सभी विशेषताओं से परिपूर्ण है। इसमें एक भारतीय माता के अद्भुत त्याग और ममता की कहानी बड़े हृदयग्राही ढंग से कही गई है।

5. मृगतृष्णा :- 

‘अच्छा, आप मेरा भी कुछ मूल्य समझते हैं अथवा मैं बेमोल की वस्तु हूँ ?’ मुस्कुराकर उसने पूछा तो युवक बोला, ‘क्या दाम कहूँ आपका ? मैं सोचता हूँ कि राधा एक अनमोल वस्तु है।’ इस पर वह हँस पड़ी, ‘आप तो कविता करने लगे हैं ! देखिए जी, मैं आपके लिए बेदाम की वस्तु बन सकती हूँ। कोई दूसरा भले ही अनमोल कहे, परन्तु आपको कुछ दाम न देना पड़ेगा।’ नारी-पुरुष ने एक-दूसरे के मर्म को छू लिया ! सुप्रसिद्ध उपन्यासकार गुरुदत्त ने मृगतृष्णा में उच्चार क्षा प्राप्त करनेवाले नवयुवकों व नवयुवतियों की समस्याओं को सापक दृष्टिकोण से देखा है। समाज में होनेवाले दंगे-फसाद और अनाचार का ऐसा रोमांचकारी चित्रण इस उपन्यास में हुआ है कि आप पढ़कर स्तब्ध रह जाएँगे

About Author

गुरुदत्त स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेवी के साथ-साथ हिन्दी के महान उपन्यासकार थे। विज्ञान के विद्यार्थी और पेशे से वैद्य होने के बावजूद वे बीसवीं शती के एक ऐसे सिद्धहस्त लेखक थे, जिन्होंने लगभग दो सौ उपन्यास, संस्मरण, जीवनचरित आदि का सृजन किया और भारतीय इतिहास, धर्म, दर्शन, संस्कृति, विज्ञान, राजनीति और समाजशास्त्र के क्षेत्र में भी अनेक उल्लेखनीय शोध-कृतियाँ दीं। राष्ट्रसंघ के साहित्य-संस्कृति संगठन यूनेस्को के अनुसार गुरुदत्त 1960-1970 के दशकों में हिंदी साहित्य में सर्वाधिक पढ़े जानेवाले लेखक रहे हैं। गुरुदत्त को क्रांतिकारियों का गुरु भी कहा जाता है। जब ये लाहौर के नेशनल कॉलेज में हेडमास्टर थे, तब सरदार भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु इनके सबसे प्रिय शिष्य थे।
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