Krantidoot Series (Set of 6 Books)

Publisher:
Sarv Bhasa Trust
| Author:
Dr. Manish Shrivastava
| Language:
Hindi
| Format:
Omnibus/Box Set (Paperback)

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#Jhansi Files :-डॉ मनीष श्रीवास्तव जी द्वारा लिखित और इंडिका के सौजन्य से क्रांतिदूत शृंखला के अंतर्गत 10 किताबों का संकलन प्रकाशित किया जाना है। इस शृंखला में भारत की सशस्त्र क्रांति को एक उपन्यास्मृति या उपन्यास्मरण के रूप में तैयार किया गया है। भारत के सुने-अनसुने, जाने-अनजाने क्रांतिदूतों की यह जीव- गाथा आपको उनके समय में ले जाए, यही लेखक की कोशिश रही है। इस शृंखला को लिखने के दौरान लेखक डॉ मनीष श्रीवास्तव जी की कोशिश रही है कि पाठक भगत सिंह को पढ़े तो उनके तथाकथित नास्तिक या वामपंथी वाले रूप की जगह आपको सिर्फ भगत सिंह दिखायी दें। सान्याल साहब का नाम सिर्फ काकोरी से जुड़ कर ना रह जाए। बिस्मिल साहब आर्यसमाजी भर ही ना दिखें और अशफाक़ मात्र एक मुसलमान क्रांतिदूत की तरह सामने ना आयें।

#Kashi :-डॉ मनीष श्रीवास्तव जी द्वारा लिखित और इंडिका के सौजन्य से क्रांतिदूत शृंखला के अंतर्गत 10 किताबों का संकलन प्रकाशित किया जाना है। भारत के सुने-अनसुने, जाने-अनजाने क्रांतिदूतों की यह जीव- गाथा आपको उनके समय में ले जाए, यही लेखक की कोशिश रही है। उसी क्रम की पहली प्रस्तुति है क्रांतिदूत #Kashi

#Mitramela :-उपन्यास्मृति या उपन्यास्मरण शृंखला के रूप में, आपके समक्ष प्रस्तुत है क्रांतिदूत, भाग-3 (मित्रमेला) की एक अनसुनी दास्ताँ! अनजाने क्रांतिदूतों की यह जीवन गाथा, क्रांतिदूतों के विचारों और चरित्रों को सर्वप्रधान रखते हुए उन्हें पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास है। क्रांतिदूत शृंखला के लेखक डॉ मनीष श्रीवास्तव का प्रयास यह है कि पाठकगण भगत सिंह को पढ़ें तो उनके तथाकथित नास्तिक या वामपंथी वाले रूप की जगह आपको केवल भगत सिंह दिखायी दें। सान्याल साहब का नाम केवल काकोरी से जोड़कर ना देखा जाए। बिस्मिल साहब आर्यसमाजी भर ही ना दिखें और अशफाक़ मात्र एक मुसलमान क्रांतिदूत की तरह सामने ना आयें। सावरकर साहब, आज़ाद साहब, सान्याल साहब, गेंदालाल जी, शांति नारायण जी, करतार सिंह, क्रांतिदूत होने के साथ एक आम इंसान भी थे। वे हँसते थे, रोते थे, मज़ाक भी करते थे, आपस में लड़ते- झगड़ते भी थे।

#Gadar :-‘रूही : एक पहेली’ और ‘मैं मुन्ना हूँ’ के बाद क्रांतिदूत के नाम से दस पुस्तकों की सीरीज लिखने वाले डॉ मनीष श्रीवास्तव जी एक समृद्ध कलम के धनि हैं। क्रांतिदूत शृंखला क्रांतिदूतों के सुने-अनसुने व छूटे हुए पक्षों को बताने का प्रयास करती है।अभी जब हम भारत की “आजादी के अमृत महोत्सव” को बड़े ही गर्व से मना रहें हैं ऐसे समय मे क्रांतिदूत शृंखला का आना सोने में सुहागा का काम कर रहा है।इस शृंखला की जो पाँच पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं वो क्रांतिदूत (भाग-1) झाँसी फाइल्स,क्रांतिदूत (भाग-2)काशी,क्रांतिदूत (भाग-3)मित्र मेला, क्रांतिदूत (भाग-4), ग़दर और क्रांतिदूत (भाग-5) बसंती चोला। मनीष जकार्ता में रहते हुए भी भारतीय साहित्य,संस्कृति व इतिहास से इतनी गूढ़ता से जुड़े हुए हैं ऐसा इनकी पुस्तकों को पढ़ने से भान होता है।आजादी के अमृत महोत्सव पर उनका यह संकलन हम सभी के लिए एक सुन्दर सौगात है।

#Basanti Chola :-‘रूही : एक पहेली’ और ‘मैं मुन्ना हूँ’ के बाद क्रांतिदूत के नाम से दस पुस्तकों की सीरीज लिखने वाले डॉ मनीष श्रीवास्तव जी एक समृद्ध कलम के धनि हैं। क्रांतिदूत शृंखला क्रांतिदूतों के सुने-अनसुने व छूटे हुए पक्षों को बताने का प्रयास करती है।अभी जब हम भारत की “आजादी के अमृत महोत्सव” को बड़े ही गर्व से मना रहें हैं ऐसे समय मे क्रांतिदूत शृंखला का आना सोने में सुहागा का काम कर रहा है।इस शृंखला की जो पाँच पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं वो क्रांतिदूत (भाग-1) झाँसी फाइल्स,क्रांतिदूत (भाग-2)काशी,क्रांतिदूत (भाग-3)मित्र मेला, क्रांतिदूत (भाग-4), ग़दर और क्रांतिदूत (भाग-5) बसंती चोला। मनीष जकार्ता में रहते हुए भी भारतीय साहित्य,संस्कृति व इतिहास से इतनी गूढ़ता से जुड़े हुए हैं ऐसा इनकी पुस्तकों को पढ़ने से भान होता है।आजादी के अमृत महोत्सव पर उनका यह संकलन हम सभी के लिए एक सुन्दर सौगात है।

#Ghar Waapsi :-डॉ मनीष श्रीवास्तव जी एक लोकप्रिय लेखक के साथ ही ऐतिहासिक तथ्यों को रोचक ढंग से पाठकों के समक्ष रखने वाले भी लेखक हैं । ‘सर्वभाषा ट्रस्ट’ से अबतक क्रांतिदूत की पाँच कड़ियाँ आ चुकी थीं । इसी शृंखला का छठा भाग #घर_वापसी है । यह भाग अब पाठकों के लिए प्रस्तुत है। “21 जुलाई 1916 को आठ पुलिसकर्मियों ने घनश्याम दास बिड़ला के घर पर छापा मारा था। बिड़ला घर में नहीं मिले लेकिन कुछ ही घंटों में हनुमान प्रसाद पोद्दार और उनके दोस्तों फूलचंद चौधरी, ज्वाला प्रसाद कनोडिया और ओंकारमल सराफ को गिरफ़्तार कर लिया गया।”

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#Jhansi Files :-डॉ मनीष श्रीवास्तव जी द्वारा लिखित और इंडिका के सौजन्य से क्रांतिदूत शृंखला के अंतर्गत 10 किताबों का संकलन प्रकाशित किया जाना है। इस शृंखला में भारत की सशस्त्र क्रांति को एक उपन्यास्मृति या उपन्यास्मरण के रूप में तैयार किया गया है। भारत के सुने-अनसुने, जाने-अनजाने क्रांतिदूतों की यह जीव- गाथा आपको उनके समय में ले जाए, यही लेखक की कोशिश रही है। इस शृंखला को लिखने के दौरान लेखक डॉ मनीष श्रीवास्तव जी की कोशिश रही है कि पाठक भगत सिंह को पढ़े तो उनके तथाकथित नास्तिक या वामपंथी वाले रूप की जगह आपको सिर्फ भगत सिंह दिखायी दें। सान्याल साहब का नाम सिर्फ काकोरी से जुड़ कर ना रह जाए। बिस्मिल साहब आर्यसमाजी भर ही ना दिखें और अशफाक़ मात्र एक मुसलमान क्रांतिदूत की तरह सामने ना आयें।

#Kashi :-डॉ मनीष श्रीवास्तव जी द्वारा लिखित और इंडिका के सौजन्य से क्रांतिदूत शृंखला के अंतर्गत 10 किताबों का संकलन प्रकाशित किया जाना है। भारत के सुने-अनसुने, जाने-अनजाने क्रांतिदूतों की यह जीव- गाथा आपको उनके समय में ले जाए, यही लेखक की कोशिश रही है। उसी क्रम की पहली प्रस्तुति है क्रांतिदूत #Kashi

#Mitramela :-उपन्यास्मृति या उपन्यास्मरण शृंखला के रूप में, आपके समक्ष प्रस्तुत है क्रांतिदूत, भाग-3 (मित्रमेला) की एक अनसुनी दास्ताँ! अनजाने क्रांतिदूतों की यह जीवन गाथा, क्रांतिदूतों के विचारों और चरित्रों को सर्वप्रधान रखते हुए उन्हें पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास है। क्रांतिदूत शृंखला के लेखक डॉ मनीष श्रीवास्तव का प्रयास यह है कि पाठकगण भगत सिंह को पढ़ें तो उनके तथाकथित नास्तिक या वामपंथी वाले रूप की जगह आपको केवल भगत सिंह दिखायी दें। सान्याल साहब का नाम केवल काकोरी से जोड़कर ना देखा जाए। बिस्मिल साहब आर्यसमाजी भर ही ना दिखें और अशफाक़ मात्र एक मुसलमान क्रांतिदूत की तरह सामने ना आयें। सावरकर साहब, आज़ाद साहब, सान्याल साहब, गेंदालाल जी, शांति नारायण जी, करतार सिंह, क्रांतिदूत होने के साथ एक आम इंसान भी थे। वे हँसते थे, रोते थे, मज़ाक भी करते थे, आपस में लड़ते- झगड़ते भी थे।

#Gadar :-‘रूही : एक पहेली’ और ‘मैं मुन्ना हूँ’ के बाद क्रांतिदूत के नाम से दस पुस्तकों की सीरीज लिखने वाले डॉ मनीष श्रीवास्तव जी एक समृद्ध कलम के धनि हैं। क्रांतिदूत शृंखला क्रांतिदूतों के सुने-अनसुने व छूटे हुए पक्षों को बताने का प्रयास करती है।अभी जब हम भारत की “आजादी के अमृत महोत्सव” को बड़े ही गर्व से मना रहें हैं ऐसे समय मे क्रांतिदूत शृंखला का आना सोने में सुहागा का काम कर रहा है।इस शृंखला की जो पाँच पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं वो क्रांतिदूत (भाग-1) झाँसी फाइल्स,क्रांतिदूत (भाग-2)काशी,क्रांतिदूत (भाग-3)मित्र मेला, क्रांतिदूत (भाग-4), ग़दर और क्रांतिदूत (भाग-5) बसंती चोला। मनीष जकार्ता में रहते हुए भी भारतीय साहित्य,संस्कृति व इतिहास से इतनी गूढ़ता से जुड़े हुए हैं ऐसा इनकी पुस्तकों को पढ़ने से भान होता है।आजादी के अमृत महोत्सव पर उनका यह संकलन हम सभी के लिए एक सुन्दर सौगात है।

#Basanti Chola :-‘रूही : एक पहेली’ और ‘मैं मुन्ना हूँ’ के बाद क्रांतिदूत के नाम से दस पुस्तकों की सीरीज लिखने वाले डॉ मनीष श्रीवास्तव जी एक समृद्ध कलम के धनि हैं। क्रांतिदूत शृंखला क्रांतिदूतों के सुने-अनसुने व छूटे हुए पक्षों को बताने का प्रयास करती है।अभी जब हम भारत की “आजादी के अमृत महोत्सव” को बड़े ही गर्व से मना रहें हैं ऐसे समय मे क्रांतिदूत शृंखला का आना सोने में सुहागा का काम कर रहा है।इस शृंखला की जो पाँच पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं वो क्रांतिदूत (भाग-1) झाँसी फाइल्स,क्रांतिदूत (भाग-2)काशी,क्रांतिदूत (भाग-3)मित्र मेला, क्रांतिदूत (भाग-4), ग़दर और क्रांतिदूत (भाग-5) बसंती चोला। मनीष जकार्ता में रहते हुए भी भारतीय साहित्य,संस्कृति व इतिहास से इतनी गूढ़ता से जुड़े हुए हैं ऐसा इनकी पुस्तकों को पढ़ने से भान होता है।आजादी के अमृत महोत्सव पर उनका यह संकलन हम सभी के लिए एक सुन्दर सौगात है।

#Ghar Waapsi :-डॉ मनीष श्रीवास्तव जी एक लोकप्रिय लेखक के साथ ही ऐतिहासिक तथ्यों को रोचक ढंग से पाठकों के समक्ष रखने वाले भी लेखक हैं । ‘सर्वभाषा ट्रस्ट’ से अबतक क्रांतिदूत की पाँच कड़ियाँ आ चुकी थीं । इसी शृंखला का छठा भाग #घर_वापसी है । यह भाग अब पाठकों के लिए प्रस्तुत है। “21 जुलाई 1916 को आठ पुलिसकर्मियों ने घनश्याम दास बिड़ला के घर पर छापा मारा था। बिड़ला घर में नहीं मिले लेकिन कुछ ही घंटों में हनुमान प्रसाद पोद्दार और उनके दोस्तों फूलचंद चौधरी, ज्वाला प्रसाद कनोडिया और ओंकारमल सराफ को गिरफ़्तार कर लिया गया।”

About Author

Manish Shrivastava’s journey embarked as an enthusiast of the Hindi language, which is also his mother tongue, and began in his college days as a playwright but came to a standstill when the burden of livelihood overpowered his adoration for and pursuit of writing. His profession range-rovered him to different parts of India, starting from Bundelkhand, which is also his hometown, to western UP, Madhya Pradesh, Andhra, Kerala and Karnataka. His extensive experience even took him to South East Asia and he is presently settled in Jakarta, Indonesia.
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