Narender Kohli (Set Of 2 Books) :- Abhyudaya Ram Katha-I | Abhyudaya Ram Katha-II

Publisher:
Dimonds Books
| Author:
नरेन्द्र कोहली
| Language:
Hindi
| Format:
Omnibus/Box Set (Paperback)

657

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ISBN:
SKU PIRAMKATHA2 Categories , Tag
Page Extent:
1294

ऋषि विश्वामित्र के समान मुझे और मेरे समय को भी श्रीराम की आवश्यकता है, जो इंद्र और रूढ़िबद्ध सामाजिक मान्यताओं की सताई हुई, समाज से निष्कासित, वन में शिलावत पड़ी, अहल्या के उद्धारक हो सकते जो ताड़का और सुबाहु से संसार को छुटकारा दिला सकते, मारीच को योजनों दूर फेंक सकते, जो शरभंग के आश्रम में ‘निसिचरहीन करौं महि का प्रण’ कर सकते, संसार को रावण जैसी अत्याचारी शक्ति से मुक्त करा सकते। किंतु वे मानव शरीर लेकर जन्‍में थे। उनमें वे सहज मानवीय दुर्बलताएं क्यों नहीं थी, जो मनुष्य मात्र की पहचान है? आदर्श पुरुष त्याग करते हैं, किंतु यह तो त्याग से भी कुछ अधिक ही था। जहां आधिपत्य की कामना ही नहीं थी। यह तो आदर्श से भी बहुत ऊपर मानवता की सीमाओं से बहुत परे कुछ और ही था। राम अपना तन अपनी इच्छा से निर्मित करते हैं, तभी तो माया को बांधकर, चेरी बनाकर लाते हैं। अष्टावक्र ने बताया, ‘मुक्तिमिच्छसि चेत्तात विषयान् विषवत्यज।‘ हे तात। यदि मुक्ति की इच्छा है, तो विषयों को विष के त्याग दें। कामना त्याग और मुक्त हो जा, आत्मा वही शरीर तो धारण करती है, जिसकी वह कामना करती है। शरीर तो हमारा भी निज इच्छा निर्मित ही है। बस आत्मा ने मन के साथ तादात्म्य कर लिया है। मन ने ढेर कामनाएं ओढ़ ली हैं, इंद्रिय सुख के सपने संजो लिए हैं। आत्मा ने उन्हीं कामनाओं की पूर्ति के लिए उपयुक्त शरीर धारण किए, जो सुख और दुख भोग रहा है। उन्हीं राम की कथा है- अभ्युदय जिसने पिछले तीस वर्षों से हिंदी के पाठक के मन पर एकाधिकार जमा रखा है।

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ऋषि विश्वामित्र के समान मुझे और मेरे समय को भी श्रीराम की आवश्यकता है, जो इंद्र और रूढ़िबद्ध सामाजिक मान्यताओं की सताई हुई, समाज से निष्कासित, वन में शिलावत पड़ी, अहल्या के उद्धारक हो सकते जो ताड़का और सुबाहु से संसार को छुटकारा दिला सकते, मारीच को योजनों दूर फेंक सकते, जो शरभंग के आश्रम में ‘निसिचरहीन करौं महि का प्रण’ कर सकते, संसार को रावण जैसी अत्याचारी शक्ति से मुक्त करा सकते। किंतु वे मानव शरीर लेकर जन्‍में थे। उनमें वे सहज मानवीय दुर्बलताएं क्यों नहीं थी, जो मनुष्य मात्र की पहचान है? आदर्श पुरुष त्याग करते हैं, किंतु यह तो त्याग से भी कुछ अधिक ही था। जहां आधिपत्य की कामना ही नहीं थी। यह तो आदर्श से भी बहुत ऊपर मानवता की सीमाओं से बहुत परे कुछ और ही था। राम अपना तन अपनी इच्छा से निर्मित करते हैं, तभी तो माया को बांधकर, चेरी बनाकर लाते हैं। अष्टावक्र ने बताया, ‘मुक्तिमिच्छसि चेत्तात विषयान् विषवत्यज।‘ हे तात। यदि मुक्ति की इच्छा है, तो विषयों को विष के त्याग दें। कामना त्याग और मुक्त हो जा, आत्मा वही शरीर तो धारण करती है, जिसकी वह कामना करती है। शरीर तो हमारा भी निज इच्छा निर्मित ही है। बस आत्मा ने मन के साथ तादात्म्य कर लिया है। मन ने ढेर कामनाएं ओढ़ ली हैं, इंद्रिय सुख के सपने संजो लिए हैं। आत्मा ने उन्हीं कामनाओं की पूर्ति के लिए उपयुक्त शरीर धारण किए, जो सुख और दुख भोग रहा है। उन्हीं राम की कथा है- अभ्युदय जिसने पिछले तीस वर्षों से हिंदी के पाठक के मन पर एकाधिकार जमा रखा है।

About Author

नरेन्द्र कोहली का जन्म 6 जनवरी 1940, सियालकोट ( अब पाकिस्तान ) में हुआ । दिल्ली विश्वविद्यालय से 1963 में एम.ए. और 1970 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की । शुरू में पीजीडीएवी कॉलेज में कार्यरत फिर 1965 से मोतीलाल नेहरू कॉलेज में । बचपन से ही लेखन की ओर रुझान और प्रकाशन किंतु नियमित रूप से 1960 से लेखन । 1995 में सेवानिवृत्त होने के बाद पूर्ण कालिक स्वतंत्र लेखन। कहानी¸ उपन्यास¸ नाटक और व्यंग्य सभी विधाओं में अभी तक उनकी लगभग सौ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनकी जैसी प्रयोगशीलता¸ विविधता और प्रखरता कहीं और देखने को नहीं मिलती। उन्होंने इतिहास और पुराण की कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखा है और बेहतरीन रचनाएँ लिखी हैं। महाभारत की कथा को अपने उपन्यास "महासमर" में समाहित किया है । सन 1988 में महासमर का प्रथम संस्करण 'बंधन' वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ था । महासमर प्रकाशन के दो दशक पूरे होने पर इसका भव्य संस्करण नौ खण्डों में प्रकाशित किया है । प्रत्येक भाग महाभारत की घटनाओं की समुचित व्याख्या करता है। इससे पहले महासमर आठ खण्डों में ( बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध) था, इसके बाद वर्ष 2010 में भव्य संस्करण के अवसर पर महासमर आनुषंगिक (खंड-नौ) प्रकाशित हुआ । महासमर भव्य संस्करण के अंतर्गत ' नरेंद्र कोहली के उपन्यास (बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध,आनुषंगिक) प्रकाशित हैं । महासमर में 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' के बारे में वर्णन है, लेकिन स्त्री के त्याग को हमारा पुरुष समाज भूल जाता है।जरूरत है पौराणिक कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समझा जाये। इसी महासमर के अंतर्गततीन उपन्यास 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' हैं जो स्त्री वैमर्शिक दृष्टिकोण से लिखे गये हैं ।
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