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परशुराम की प्रतीक्षा I Parshuram Ki Pratiksha: Dinkar Granthmala (Hindi)
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PRATYASHA
Publisher:
Hind Yugm
| Author:
Anumita Sharma
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Categories: Hindi, PIRecommends
Page Extent:
160
‘प्रत्याशा’ एकाकी परिदृश्यों को उजागर करती है। ये कहानियाँ उनकी हैं जो जीवन के किसी न किसी मोड़ पर ख़ुद को अकेला पाते हैं। एकांत दुखदायी होता है लेकिन कल्पनाओं को पंख भी दे सकता है। इन ग्यारह कथाओं में हम वास्तविकता की सतह की पड़ताल करते हुए अवचेतन मन में दबी विकृत आकांक्षाओं और रोमांचक भय का सामना करते हैं। कल्पना में जादू कोई भ्रम नहीं; यहाँ प्रतिदिन कुछ रहस्यमय मिलता है और डरावना भी। इन रास्तों में अतीत के प्रति खिंचाव, प्रेम की चाह, साहचर्य की कामना, दिल टूटने का दर्द, वृद्धावस्था और मृत्यु के पुराने प्रश्न, और कोरोना जैसी नई उलझनों के साथ, अपनी जानी-पहचानी दुनिया का एक जटिल संस्करण है। पात्र अँधेरे में टटोलते हुए आगे बढ़ते हैं, और अप्रत्याशित तरीकों से उस सीमा को छू लेते हैं, जहाँ सामान्य जीवन भी अलौकिक में बदल जाता है। प्रत्येक कहानी आपके दिल को छुएगी और आपके सपनों को चकनाचूर कर देगी।
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Description
‘प्रत्याशा’ एकाकी परिदृश्यों को उजागर करती है। ये कहानियाँ उनकी हैं जो जीवन के किसी न किसी मोड़ पर ख़ुद को अकेला पाते हैं। एकांत दुखदायी होता है लेकिन कल्पनाओं को पंख भी दे सकता है। इन ग्यारह कथाओं में हम वास्तविकता की सतह की पड़ताल करते हुए अवचेतन मन में दबी विकृत आकांक्षाओं और रोमांचक भय का सामना करते हैं। कल्पना में जादू कोई भ्रम नहीं; यहाँ प्रतिदिन कुछ रहस्यमय मिलता है और डरावना भी। इन रास्तों में अतीत के प्रति खिंचाव, प्रेम की चाह, साहचर्य की कामना, दिल टूटने का दर्द, वृद्धावस्था और मृत्यु के पुराने प्रश्न, और कोरोना जैसी नई उलझनों के साथ, अपनी जानी-पहचानी दुनिया का एक जटिल संस्करण है। पात्र अँधेरे में टटोलते हुए आगे बढ़ते हैं, और अप्रत्याशित तरीकों से उस सीमा को छू लेते हैं, जहाँ सामान्य जीवन भी अलौकिक में बदल जाता है। प्रत्येक कहानी आपके दिल को छुएगी और आपके सपनों को चकनाचूर कर देगी।
About Author
अनुमिता शर्मा का बचपन बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में गुज़रा और दसवीं के बाद की पढ़ाई दिल्ली में हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से इतिहास में बीए और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास में ही एमए किया। उसके पश्चात पत्रकारिता में डिप्लोमा भी किया मगर पत्रकार बनने का कोई हुनर स्वयं में नहीं पाया। अंतर्मुखी स्वभाव और हर तरह की पुस्तकें पढ़ने का शौक़ बढ़ते-बढ़ते लिखाई तक पहुँच गया। बहुत ज़्यादा सफलता नहीं मिली परंतु थोड़ी-बहुत प्रशंसा ज़रूर मिली, जिससे मनोबल इतना बढ़ गया कि तीन अँग्रेज़ी उपन्यास (द कर्स ऑफ़ येस्टरडे, सम वेरी डिग़नीफ़ायड डिस्क्लोज़र्स और 99 मून ऐवेन्यू) लिख डाले। पहला हिंदी कहानी-संग्रह ‘कुछ आपबीती कुछ जगबीती’ भारतीय ज्ञानपीठ से छपा तो कुछ और प्रशंसा मिली। इसी हिम्मत के सहारे दूसरा कहानी-संग्रह तैयार हो गया, जो बेस्ट सेलर बनने की ‘प्रत्याशा’ के साथ आपके सामने है।
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