शुभदा | Shubhda

Publisher:
Penguin Swadesh
| Author:
Sharatchandra
| Language:
Hindi
| Format:
Papeback

203

Save: 10%

In stock

Ships within:
1-4 Days
26 People watching this product now!

In stock

ISBN:
SKU 9780143465447 Category
Page Extent:
202

“वह आकर बोला, अपने संदूक की चाभी दे।” गला बड़ा मोटा था – भारी। अचानक, सुनते ही ख्याल होता था, मानो को शीश करके वह ऐसा भारी गले से बोल रहा था। शुभदा कुछ नहीं बोली। उसने फिर वैसे ही स्वर में, लाठी को फिर एक बार जमीन पर पटककर कहा, ‘चाभी दे, नहीं तो गला दबा कर मार डालूँगा।’ अब शुभदा उठ बैठी। तकिए के नीचे से चाभियों का गुच्छा निकालकर पास ही फेंककर धीरे-धीरे शांत भाव से बोली, “मेरे बड़े संदूक के दाईं ओर के खाने में पचास रुपए का नोट है, कृपया लेना। बाईं और विश्वनाथ थे बाबा का प्रसाद है, उसपर कहीं हाथ न डालना।’ जिस तरह शांत भाव से उसने यह सब कह डाला, उससे यह नहीं मालूम होता था कि उसे अब रत्ती भर भी डर लग रहा है। शुभदा एक ऐसी नारी की मार्मिक कथा है जो गरीबी की यातनाएँ झेलते हुए अपने नशेड़ी पति के प्रति समर्पिता ही नहीं, बल्कि स्वाभिमानी भी है – शुभदा और उसकी विधवा बेटी के माध्यम से शरत् बाबू ने नारी वेदना की गहन अभिव्यक्ति की है। संभवतः इसी कारण उन्हें ‘नारी वेदना का पुरोहित’ कहा जाता है।

0 reviews
0
0
0
0
0

There are no reviews yet.

Be the first to review “शुभदा | Shubhda”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You have to be logged in to be able to add photos to your review.

Description

“वह आकर बोला, अपने संदूक की चाभी दे।” गला बड़ा मोटा था – भारी। अचानक, सुनते ही ख्याल होता था, मानो को शीश करके वह ऐसा भारी गले से बोल रहा था। शुभदा कुछ नहीं बोली। उसने फिर वैसे ही स्वर में, लाठी को फिर एक बार जमीन पर पटककर कहा, ‘चाभी दे, नहीं तो गला दबा कर मार डालूँगा।’ अब शुभदा उठ बैठी। तकिए के नीचे से चाभियों का गुच्छा निकालकर पास ही फेंककर धीरे-धीरे शांत भाव से बोली, “मेरे बड़े संदूक के दाईं ओर के खाने में पचास रुपए का नोट है, कृपया लेना। बाईं और विश्वनाथ थे बाबा का प्रसाद है, उसपर कहीं हाथ न डालना।’ जिस तरह शांत भाव से उसने यह सब कह डाला, उससे यह नहीं मालूम होता था कि उसे अब रत्ती भर भी डर लग रहा है। शुभदा एक ऐसी नारी की मार्मिक कथा है जो गरीबी की यातनाएँ झेलते हुए अपने नशेड़ी पति के प्रति समर्पिता ही नहीं, बल्कि स्वाभिमानी भी है – शुभदा और उसकी विधवा बेटी के माध्यम से शरत् बाबू ने नारी वेदना की गहन अभिव्यक्ति की है। संभवतः इसी कारण उन्हें ‘नारी वेदना का पुरोहित’ कहा जाता है।

About Author

शरत् चन्द्र चट्टो पाठ्यक्रम बनाने के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार एवं लघुकथा कार थे। उनकी अधिकांश कृतियों में गाँव के लोगों की जीवनशैली, उनके संघर्ष और उनके द्वारा झेले गए संकटों का विवरण है। इसके अलावा, उनकी रचनाओं में तत्कालीन बंगाल के सामाजिक जीवन की झलक मिलती है। शरत् चन्द्र भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय और सर्वाधिक अनूदित लेखकों में से एक थे। 16 जनवरी 1938 ई. को कोलकाता में उनका निधन हुआ।
0 reviews
0
0
0
0
0

There are no reviews yet.

Be the first to review “शुभदा | Shubhda”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You have to be logged in to be able to add photos to your review.

YOU MAY ALSO LIKE…

Recently Viewed