सोने का थाल | Sone Ka Thal

Publisher:
Penguin Swadesh
| Author:
Aacharya Chatursen
| Language:
Hindi
| Format:
Papeback

198

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144

शिवाजी ने छत्रसाल के कंधे पर हाथ रखकर कहा, ‘वीर बुंदेले कुमार, जो कोई भी देशों धारा का पवित्र व्रत धारण करता है: नीति, त्याग और समता के देवता मंगलगान करते हुए उसके साथ-साथ चलते हैं। शालीनता, माधुर्य और सत्य-प्रतिज्ञा उसके पर छवर डुलाती हैं। दक्षता और तत्परता उसका मार्ग सार्थक करती है। छत्रसाल, मैं भी तुम्हारी ही भाँति स्वाधीनता का पुजारी हूँ।’

इतिहास और भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ आचार्य चतुरसेन की लोख-लेखनी से निकले इस प्रेरक उपन्यास में बुदेलखंड की आजादी की बहुत ही संघर्षपूर्ण कहानी दी गई है। छत्रसाल ने जिस अनूठी सूझ-बूझ, आत्मा भिमान और शूरवीरता का परिचय देकर बुंदेलखंड को स्वतंत्र कराया उसका बहुत ही रोचक, उत्तेजक और रोमांचकारी वर्णन इस उपन्यास की विशेषता है।

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Description

शिवाजी ने छत्रसाल के कंधे पर हाथ रखकर कहा, ‘वीर बुंदेले कुमार, जो कोई भी देशों धारा का पवित्र व्रत धारण करता है: नीति, त्याग और समता के देवता मंगलगान करते हुए उसके साथ-साथ चलते हैं। शालीनता, माधुर्य और सत्य-प्रतिज्ञा उसके पर छवर डुलाती हैं। दक्षता और तत्परता उसका मार्ग सार्थक करती है। छत्रसाल, मैं भी तुम्हारी ही भाँति स्वाधीनता का पुजारी हूँ।’

इतिहास और भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ आचार्य चतुरसेन की लोख-लेखनी से निकले इस प्रेरक उपन्यास में बुदेलखंड की आजादी की बहुत ही संघर्षपूर्ण कहानी दी गई है। छत्रसाल ने जिस अनूठी सूझ-बूझ, आत्मा भिमान और शूरवीरता का परिचय देकर बुंदेलखंड को स्वतंत्र कराया उसका बहुत ही रोचक, उत्तेजक और रोमांचकारी वर्णन इस उपन्यास की विशेषता है।

About Author

आचार्य चतुरसेन शास्त्री हिंदी भाषा के एक महान उपन्यासकार थे। उनका अधिकतर लेखन ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित था। उनकी प्रमुख कृतियाँ 'गोली', 'सोमनाथ', 'वयंरक्षामः' और 'वैशाली' की नगरवधू इत्यादि हैं। आभा उनकी पहली रचना थी और उनके अत्यधिक शास्त्रीय शास्त्री जी ने प्रौढ शिक्षा, स्वास्थ्य, धर्म, इतिहास, संस्कृति, और नैतिक शिक्षा पर कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं।
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