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Vartman Natyashastra Ka Vishleshan

Publisher:
Lokbharti Prakashan
| Author:
Dr. Shiv Murat Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

560

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SKU ‎ 9788119133154 Categories , , Tag
Page Extent:
256

नाट्यशास्व की रचना देव-भाषा संस्कृत या देव वाणी में हुई है, जिसकी महिमा से पार नहीं पाया जा सकता है। नाट्योत्पत्ति, नाट्यशास्त्र क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं आता। इस विषय का घनिष्ठ सम्बन्ध नृशास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, शरीर विज्ञान, भाषा विज्ञान आदि से है। फिर नाट्योत्पत्ति सम्बन्धी जानकारी प्राप्त कर रूपक-संरचना समझने में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। यह मानवीय क्रिया है। इसका सम्बन्ध समाज-प्रकृति-परिवेश से है, प्रगति प्रक्रिया से है, समय और स्थान से है। भविष्य से सम्बन्धित विचारों और तदनुरूप आशाओं से रहित मनुष्य की कल्पना करना असम्भव है। मानव जाति हमेशा ही बेहतर भविष्य का स्वप्न देखती रही है। सामाजिक एवं आर्थिक विकास ही मानवजाति की मूल समस्या रही है। मनुष्य की गतिशीलता और उनके सक्रिय जीवन से भाषा की भाँति नाट्य का गहरा सम्बन्ध है। लेकिन ऐतिहासिक प्रगति या सामाजिक विकास के आधार को मान्यता न देकर धार्मिकता या दैवाधीनता को महत्त्व देकर इस नाट्यशास्त्र को बड़ा या विस्तृत आकार दिया गया है।

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Description

नाट्यशास्व की रचना देव-भाषा संस्कृत या देव वाणी में हुई है, जिसकी महिमा से पार नहीं पाया जा सकता है। नाट्योत्पत्ति, नाट्यशास्त्र क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं आता। इस विषय का घनिष्ठ सम्बन्ध नृशास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, शरीर विज्ञान, भाषा विज्ञान आदि से है। फिर नाट्योत्पत्ति सम्बन्धी जानकारी प्राप्त कर रूपक-संरचना समझने में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। यह मानवीय क्रिया है। इसका सम्बन्ध समाज-प्रकृति-परिवेश से है, प्रगति प्रक्रिया से है, समय और स्थान से है। भविष्य से सम्बन्धित विचारों और तदनुरूप आशाओं से रहित मनुष्य की कल्पना करना असम्भव है। मानव जाति हमेशा ही बेहतर भविष्य का स्वप्न देखती रही है। सामाजिक एवं आर्थिक विकास ही मानवजाति की मूल समस्या रही है। मनुष्य की गतिशीलता और उनके सक्रिय जीवन से भाषा की भाँति नाट्य का गहरा सम्बन्ध है। लेकिन ऐतिहासिक प्रगति या सामाजिक विकास के आधार को मान्यता न देकर धार्मिकता या दैवाधीनता को महत्त्व देकर इस नाट्यशास्त्र को बड़ा या विस्तृत आकार दिया गया है।

About Author

डॉ. शिव मूरत सिंह श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन 1935 में गाजीपुर जनपद के बसन्तपट्टी (करण्डा) गाँव में जन्में डॉ. शिवमूरत सिंह ने एम.ए. (हिन्दी) तथा पी.एच.डी. की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय गाजीपुर में हिन्दी विभाग में अध्यापन किया तथा 1996 में सेवानिवृत्त हुए। साहित्य-सेवा : मौलिक-नयकी पीढ़ी, पूर्वार्द्ध, गांधारी, अंधेरे की रोशनी (कथा रूपक) नाट्यालेख जनमेजय का नागयज्ञ (जयशंकर 'प्रसाद') अकेला शहर (डॉ. शम्भुनाथ सिंह) समीक्षात्मक नाट्यलेख-उपन्यास-निर्मला (प्रेमचन्द), टोपी शुक्ला (राही-मासूम रजा), पुरुष- पुराण (विवेकी राय)। सम्पादन-रंग-प्रभा (माध्यम, नाट्य-संस्थान की वार्षिकी)। रंगयात्रा : गाँव के रंगमंच से प्रारम्भ कर बलिया, वाराणसी, कोलकाता के रंगमंचों से होकर गाजीपुर में, अभिनेता, नाटककार, निर्देशक, प्रशिक्षक, समीक्षक, सम्पादक एवं अनुवादक के रूप में कार्य।
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